आवाज़ जो कभी नहीं रुकी: एक सच्ची और डरावनी दास्तान”
भूमिका
हम सभी के जीवन में कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो हमारे दिलो-दिमाग़ पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। कुछ अनुभव हमें भावनात्मक रूप से झकझोर देते हैं, तो कुछ इतने रहस्यमयी और डरावने होते हैं कि वो हमारी नींद तक उड़ा देते हैं। आज जो कहानी मैं आपको बताने जा रहा हूँ, वो एक ऐसी ही दास्तान है — सच्ची, डरावनी और बेहद भावनात्मक। यह घटना उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव बासेपुर की है, जहाँ एक लड़की की आत्मा आज भी सिसकती है… और शायद, आवाज़ देती है।
कहानी की शुरुआत
साल 2002 की बात है। गाँव बासेपुर में एक छोटी सी प्यारी लड़की रीमा अपने माता-पिता के साथ रहती थी। रीमा दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी और पढ़ाई में काफी होशियार थी। उसका सपना था कि वो एक दिन डॉक्टर बने और गाँव की महिलाओं के लिए कुछ कर सके। रीमा की मासूम मुस्कान और सादगी ने पूरे गाँव का दिल जीत लिया था।
लेकिन रीमा की किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
अंधविश्वास और तंत्र विद्या
गाँव के पास ही एक पुराना और सुनसान इलाका था जिसे लोग “भूत की बावड़ी” कहते थे। कहा जाता था कि वहाँ रात के समय अजीब-अजीब आवाज़ें आती हैं। किसी ने वहां एक महिला को सफेद साड़ी में देखा था, तो किसी ने अपने आप चलते हुए झूले को। गाँव के बुज़ुर्गों ने बच्चों को उस इलाके में जाने से सख़्त मना किया हुआ था।
एक दिन रीमा अपनी सहेली पूनम के साथ स्कूल से लौट रही थी। रास्ते में पूनम ने शरारत में रीमा को उस बावड़ी के पास चलने को कहा। रीमा थोड़ी डरी हुई थी लेकिन हँसते हुए साथ चल दी। उन्होंने कुछ देर वहां बैठकर बातें की, लेकिन तभी अचानक रीमा को किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। पूनम ने कुछ नहीं सुना, लेकिन रीमा की आँखें डर से फटी जा रही थीं।
उस रात के बाद से रीमा बदलने लगी।
शुरू हुई अजीब घटनाएँ
रीमा अब शांत रहने लगी थी। वह जो लड़की पहले हर समय मुस्कुराती थी, अब बिना बात के गुमसुम बैठी रहती। कई बार उसकी माँ कमला देवी ने देखा कि रीमा रात को अचानक जागकर किसी से बातें करती है, जबकि कमरे में कोई नहीं होता।
एक रात, कमला देवी की नींद तब खुली जब उन्हें रीमा के कमरे से चीखने की आवाज़ आई। जब उन्होंने दरवाज़ा खोला, तो देखा कि रीमा ज़मीन पर बैठी है, उसकी आँखें उलटी हो चुकी हैं, और वह किसी अजनबी भाषा में कुछ बोल रही है।
घरवालों ने पहले तो इसे मानसिक तनाव समझा और रीमा को डॉक्टर के पास ले गए। लेकिन मेडिकल रिपोर्ट्स एकदम सामान्य थीं। डॉक्टर ने कहा, “इस पर किसी तरह का कोई मानसिक दबाव नहीं है।”
अब परिवार घबरा गया था। किसी ने सुझाव दिया कि किसी तांत्रिक को दिखाया जाए।
तांत्रिक की चेतावनी
गाँव के पास ही एक प्रसिद्ध तांत्रिक महेश बाबा रहते थे। जब उन्होंने रीमा को देखा तो उनकी आँखें एक पल के लिए खुली की खुली रह गईं। उन्होंने कहा:
“ये लड़की अब अकेली नहीं है। इसके साथ कोई और भी है… कोई बहुत पुरानी आत्मा… जिसने इसके शरीर को अपना घर बना लिया है।”
परिवार हक्का-बक्का रह गया।
महेश बाबा ने बताया कि बावड़ी के पास एक युवती की आत्महत्या हुई थी, जिसे गाँव वालों ने छिपाने की कोशिश की थी। वह युवती, सुहाना, एक मंदिर के पुजारी की बेटी थी और एक दलित लड़के से प्रेम करती थी। जब गाँववालों को यह पता चला, तो उन्होंने दोनों को बेरहमी से मार डाला। सुहाना की आत्मा तब से भटक रही थी, और अब वो रीमा के शरीर में समा गई थी।
भूत भगाने की रात
पूरा गाँव इकट्ठा हुआ। रीमा को मंदिर के सामने बाँध दिया गया। चारों ओर हवन, मंत्र, और जलती हुई धूप थी। महेश बाबा ने रीमा की आँखों में देख कर ज़ोर से कहा:
“तू जो भी है, छोड़ दे इस मासूम बच्ची को! उसे जीने दे!”
रीमा ज़ोर से हँसी — पर वो हँसी रीमा की नहीं थी। एक गहरी, भारी और डरावनी आवाज़ में उसने कहा:
“उसे जीने नहीं दूँगी। जब तक इंसाफ़ नहीं मिलेगा… मैं हर साल एक लड़की को अपने साथ ले जाऊँगी।”
यह सुनकर सब लोग काँप उठे।
नियति की सज़ा
महेश बाबा ने कई घंटे पूजा की, मंत्र पढ़े, और अंत में उस आत्मा को वचन दिलवाया कि यदि गाँव उसकी हत्या का प्रायश्चित करेगा और मंदिर में उसका नाम जोड़कर पूजा करेगा, तो वह रीमा को छोड़ देगी।
गाँव वालों ने अगले ही दिन मंदिर में सुहाना की मूर्ति स्थापित की और हर साल उसके नाम की पूजा की शपथ ली।
उस रात रीमा को भयंकर दर्द हुआ और अचानक वो बेहोश हो गई। सुबह जब उसकी आँखें खुलीं, तो वह सामान्य थी — फिर से वही मुस्कुराती हुई रीमा।
भावनात्मक मोड़
आज रीमा एक डॉक्टर है। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और गाँव में ही एक छोटी सी क्लीनिक खोल ली है। लेकिन वो हर साल सुहाना की पूजा खुद करती है। रीमा कहती है:
“मैं अब जानती हूँ कि आत्माएँ भी दर्द महसूस करती हैं। सुहाना सिर्फ इंसाफ़ चाहती थी, बदला नहीं। अगर हमने समय पर उसका दर्द समझा होता, तो शायद बहुत कुछ बच जाता।”
रीमा आज भी उस बावड़ी के पास जाती है, फूल चढ़ाती है, और कहती है —
“मैं तुम्हें नहीं भूली हूँ सुहाना दीदी…”
निष्कर्ष
यह कहानी सिर्फ एक डरावनी घटना नहीं है, यह उस समाज का आइना है जहाँ प्रेम करने की सज़ा मौत होती है, और जहाँ आत्माओं को भी अपने हक़ के लिए भटकना पड़ता है। रीमा की कहानी डराती ज़रूर है, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा रुलाती है। हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई हम इंसाफ़ देने के काबिल समाज हैं?
शायद नहीं।
शायद इसी लिए, आज भी कुछ आवाज़ें रात के सन्नाटे में गूंजती हैं…
क्योंकि वो आवाज़ें, आज भी इंसाफ़ माँग रही हैं।
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